Pradeep
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ओ सखी साजन ना आये,
सुध गवाई नैन बिसराए |
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इन अंखियन में सावन बीते,
हिय मुरझाये, बिरहन जीते,
इस बिरहन को ब्याह गयी मैं,
उनकी आस लगाये |
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क्या कारण कि साजन रूठे,
घर आँगन मन बगियन सूखे,
श्रृंगार करूँ किस कारण कि,
ना दर्पण और रिझाये |
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रात दिवस के जोड़ी-जोड़ी,
दिन कट जाए रात निगोड़ी,
इस रैना को भा गयी मैं,
नैनन से नींद उड़ाए |
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ये हिय आली वास उन्ही का,
ये मन आली दास उन्ही का,
हर क्षण अब एहसास उन्ही का,
और वो निर्मोही बड़ा सताए |
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ओ सखी, साजन ना आये ||
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